हाँ, अब उसे अपने को नई परिस्थितियों के अनुकूल बनाना पड़ेगा।
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हमें अधिक परिश्रम से इन चरित्र नियामक नैतिक किन्तु नीरस गुणों में भी बच्चों की रुचि जागृत करनी पड़ती है, उनका मानसिक गठन उन परिस्थितियों के अनुकूल बनाना है तथा उनमें वे भाव स्वाभाविक रूप से उड़ेलने हैं, तभी वे अपने भावी जीवन में अपने देश और जाति का मस्तक गौरव से ऊंचा कर सकेंगे और तभी सत्यापित किया जा सकता है कि चरित्र ही जीवन की रक्षा करता है!